ढूंढ रहा मैं खुद को.....
ढूंढ रहा मैं खुद को
मेरा वजूद क्या है
किसलिए आया मैं इस दुनिया मैं
मेरी पहचान क्या है
देखो दर-दर भटक रहा
ये राही नया आया है
जिंदगी के इस सफर मैं
ठिकाना इसका कहाँ है
ढूंढ रहा मैं खुद को
मेरा वजूद क्या है
किसलिए आया मैं इस दुनिया मैं
मेरी पहचान क्या है
माटी की काया पहन के
मैं नयी उमंगें भरता हूँ
हवा भरी गुब्बारे मैं
दुनिया की सैर करता हूँ
कभी यहाँ-कभी वहां ले जाती
इस हवा का राज क्या है
ढूंढ रहा मैं खुद को
मेरा वजूद क्या है
किसलिए आया मैं इस दुनिया मैं
मेरी पहचान क्या है
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